सरकारी दामाद
सरकारी दामाद
जिस घर बिटिया स्यानी हो गई,
नींद उड़ी है रातों की ।
चिंता चित करत है निशदिन,
चैन छिना है बातों की ।
सरकारी नौकर हो लरका,
बंधी गिरश्ती वाला हो।
चलते पुर्जा मात पिता हों,
अच्छी चलती वाला हो।
वर घर सबकुछ देख रहे हैं,
पर चिंता है नातों की।
जिस घर बिटिया,,,,,,
जिनके लरका करें नौकरी,
सीधे मुंह बोलत नइयां।
मांग मांगकर हार न मानत,
हार गए मोरे सईयां।
आव भगत न करते कुछ भी,
बात करते वे खातों की।
जिस घर बिटिया,,,,,,,
रिश्तेदार दोस्त सब छानत,
चर्चा होती घर घर में।
अंक पत्र और फोटों मांगत,
कमी बताते न वर में।
रंग गोरी,ऊंचाई छे फुट,
लड़की ऊंची जातों की।
जिस घर बिटिया,,,,,,,
वाहन चाहें चार चका को,
सब दहेज़ चाहत नीको।
खाना पीना अच्छा चाहे,
बिना बफर लागत फीको।
गहने में अनजान न रइयो,
लाज रखें बारातों की।
जिस घर बिटिया,,,,,
स्वरचित
डा आर बी पटेल अनजान
छतरपुर
सीताराम साहू 'निर्मल'
17-Jul-2023 08:55 PM
बहुत सुंदर प्रस्तुतिकरण
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Reena yadav
17-Jul-2023 08:39 AM
👍👍
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
17-Jul-2023 07:42 AM
वास्तविकता को दर्शाती हुई कविता
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